पत्रिका: हिमप्रस्थ, अंक: 02,स्वरूप: मासिक, संपादक: रणजीत सिंह राणा, पृष्ठ: 56, मूल्य:5रू. (वार्षिक 50रू.), ई मेल: himprasthahp@hp , वेबसाईट/ब्लाॅग: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. उपलब्ध नहीं, सम्पर्क: हि.प्र. प्रिटिंग प्रेस परिसर, घोड़ा चैकी, शिमला-5
पत्रिका का समीक्षित अंक विचार योग्य आलेखों से युक्त है। अंक में -निराला के कथा साहित्य मंे सत्य की अवधारणा(दिनेश कुमारी), कुछ अलग हैं कमलेश्वर की कहानियां(प्रो. विश्वंभर अरूण) हिंदी गद्य लेखन और खड़ी बोली(एच.एस. श्रीमान), शिवप्रसाद सिंह की कहानियों में दलित चेतना(कमल कृष्ण) एवं नई कविता दिशा भ्रम या दिशाबोध(सुरेन्द्र अंचल) विशेष रूप से ध्यान देने योग्य हैं। कहानियों में प्रेम पचीसी(डाॅ. मनोज श्रीवास्तव) एवं तुम अध्यापक नहीं हो चंद्रकांत(रामकुमार आत्रेय) आज के वातावरण में व्याप्त त्रास कुंठा अच्छी तरह व्यक्त कर सकी हैं। लघुकथाओं में आकांक्षा यादव, अखिलेश शुक्ल, पंकज शर्मा एंव नरेश कुमार प्रभावित करते हैं। मुकेश चंद्र नेगी, कमल सिंह चैहान एवं साहिल की ग़ज़ल अच्छी व पठनीय रचनाएं हैं। ख्यात कवि व रचनाकार राजेन्द्र परदेसी की कविताएं ताना-बाना, न कहने से, विविधता एवं अवश्य हुआ होेगा विचार योग्य विषयों का गंभीर प्रस्तुतिकरण है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं व समाचार भी प्रभावित करते हैं।

3 टिप्पणियाँ

  1. mujhe kamlehver ki kahani bahut pasand aati hai

    जवाब देंहटाएं
  2. हमें यह ब्‍लाग अव्‍छा लगा. पत्रि‍काओं के बारे में सहज ही जानकारी मिल जाती है. कृपया अपना डाक पता दें. हम भी अपना ताजा अंक आपको भेजना चाहते हैं ताकि जिन पाटकों को रुचि हो उन तक हिमाचल मित्र की प्रति पहुंचाई जा सके.

    जवाब देंहटाएं
  3. हमेशा की तरह आपकी सक्रियता अच्छी लगती है।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने