पत्रिका: हिंदी चेतना, अंक: जनवरी.10, स्वरूप: त्रैमासिक, प्रधान संपादक: श्याम त्रिपाठी, संपादक: सुधा ओम ढीगरा, पृष्ठ: 56, मूल्य: उपलब्ध नहीं रू.(वार्षिकः अनउपलब्ध), ई मेल: hindichetna@yahoo.ca , वेबसाईट: http://www.vibhom.com/ , फोन/मो.(905)4757165, सम्पर्क: 6 Larksmere Court, Markham, Ontario L3R 3R1
पत्रिका का जनवरी 10 अंक अपने परिवर्तित रूप में आकर्षित करता है। अंक की साज सज्जा, कलेवर, विषय वस्तु आदि प्रभावशाली है। प्रथम आलेख ‘भारतीय संस्कार एवं संस्कृति के पुरोधा प्रवासी भारतीय’(लक्ष्मीनारायण गुप्त) विदेशों में रह रहे हिंदी प्रेमियों के योगदान पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालता है। मृदुला कीर्ति ने विचारों की उपादेयता पर गहन गंभीर आलेख लिखा है। वहीं दूसरी ओर इन्द्रा (धीर) वडेरा का आलेख अनुशासन व उसके महत्व पर दृष्टिपात करता है। डाॅ. अंजना संधीर का संस्मरण ‘एक दरवाजा बंद हुआ तो दूसरा खुला’ अहमदाबाद के साहित्यिक वातावरण की यादें ताज़ा करता है। प्रख्यात लेखक आत्माराम शर्मा ने हिंदी ब्लाग जगत में लिखी जा रही ‘पोस्ट’ का सटीक विश्लेषण किया है। सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानी ‘अब के बिछड़े’ वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों पर विचार करती दिखाई देती है। एक अन्य कहानी ‘मुन्ना’ बच्चों की जिज्ञासा व उनकी मनःस्थिति से पाठक को जोड़कर आनंद देती है। डाॅ. अफरोज ताज की कहानी ‘अमरीका वाला’ प्रसिद्ध कहानीकार रवीन्द्र नाथ टैगोर की कहानी काबुलीवाला की यादें ताजा करती है। कहानी ‘जहां से चले थे’(मनमोहन गुप्त) मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की चिंताओं से अवगत करती है। हिंदी चेतना की संपादक व ख्यात कथाकार डाॅ. सुधा ओम ढीगरा की कहानी ‘लड़की थी वह’ बहुत ही मार्मिक रचना है। यह मानवीय संवेदनाओं व ममतत्व के आधार पर बुनी गई है। प्राध्यापिका अनुपमा द्वारा अबोध बच्ची पर अपना ममतत्व लुटाना मन में गहरी छाप छोड़ गया। कहानी सामाजिक सहिष्णुता का संदेश भी देती है। शर्दुला, योगेन्द्र मोदगिल, अशोक गुप्ता, बृजेन्द्र श्रीवास्तव, देवमणि पाण्डेय, किरण सिंह, साफिर समदर्शी, पूर्णिमा वर्मन, शशि पाधा, भारतेन्द्र श्रीवास्तव, भगवत शरण श्रीवास्तव, अमित कुमार सिंह, किरण सिन्हा, अभिनव शुक्ल, व सुरेन्द्र पाठक की कविताएं प्राचीन व नवीन पीढ़ी के मध्य सेतु बनाती दिखाई देती है। इनमें तत्कालीन बाजारवाद की अनुगूंज तो है लेकिन गरीब, पिछड़े, असहाय व साधन विहीन वर्ग को भुलाया नहीं गया है। समस्त कविताएं भूमंडलीकरण के दौर में आम आदमी को सुखद जीवन जीने की पे्ररणा देती है। समीर लाल का आलेख ‘बिजली रानी बड़ी सयानी’ एक अच्छी व्यंग्य रचना है। अखिलेश शुक्ल की लघुकथाएं, देवी नागरानी की समीक्षा(किताब जिंदगी की), दीवाली उत्सव समाचार एवं श्रीमती साध्वी वाजपेयी को श्रद्धांजलि(लेखिका सरोज सोनी) रचनाएं पत्रिका को परिपूर्णता प्रदान करती है। कनाड़ा से प्रकाशित हिंदी चेतना के इस सुंदर सहेजने योग्य अंक के प्रकाशन पर पूरी टीम व सहयोगी बधाई के पात्र हैं। प्रधान संपादक श्याम त्रिपाठी जी का कथन ‘साहित्यकार सत्यम, शिवम, संुदरम की भावना लेकर साहित्य सृजन करें’ स्वागत योग्य व प्रेरणादायी कथन है। पुनः बधाई

4 टिप्पणियाँ

  1. हिंदी चेतना की समीक्षा के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ .
    हिंदी चेतना के माध्यम से आपने साहित्यिक पत्रिकाओं की समीक्षा में 300 का आंकड़ा छुआ है।
    बधाई..आप इसी तरह उन्नति की राह पर बढ़ते रहें ..हार्दिक शुभ कामनाएँ स्वीकार करें.

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  2. विदेश मे भी हिन्दी के लिये इतना काम किया जा रहा है यह जानकर प्रसन्नता हुई ।

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