पत्रिका: उत्तर प्रदेश, अंक: जनवरी10, स्वरूप: मासिक, संपादक: सुरेश उजाला, पृष्ठ: 36, मूल्य: 10 रू.(वार्षिक 110रू.), phone : 2239132, 2239135, ई मेल: upinfo@satyam.net.in , वेबसाईट: http://www.upgovt.nic.in/ , सम्पर्क: संपादक उत्तर प्रदेश, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, पार्क रोड़, लखनऊ
प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका उत्तर प्रदेश के इस अंक में कहानियों के साथ साथ अच्छे आलेखों का प्रकाशन भी किया गया है। अंक में प्रगतिवादी काव्य में व्यक्त प्रवृत्तिमार्गी जीवन दर्शन(प्रा. संतोष कुमार लक्ष्मण यशवंतकर), अनुभूतियां अभिव्यक्ति चाहती हैं(डाॅ. गिरीश कुमार शर्मा) एवं व्यक्तिपरक चेतना के अग्रणी मनीषी श्रीकांत वर्मा(जगदीश यादव) आलेखों में संबंधित विषय विशेष पर एकाग्र किया गया है। अखिलेश शुक्ल की कहानी टेªन से उतरा वह आदमी ग्रामीण जीवन की सोच में आ रहे बदलाव की ओर संकेेत करती है। डाॅ. स्वाती तिवारी की कहानी समाज सेवा एक तथ्यपरक रचना है। दया पवार से रतीलाल शाहनी की बातचीत ‘आज भी मुझे कविता अच्छी लगती है’ में कविता के प्रति उनका अनुराग पाठकों को पुनः कविता की ओर आकर्षित करने में सफल होगा। हरपाल सिंह अरूण, डाॅ. स्वर्णलता, रमाकांत मिश्र व अशोक अंजुम की कविताएं एक नई सोच के साथ आगे ले जाने के लिए तत्पर हैं।रावेन्द्र कुमार रवि की कविता ‘नए वर्ष’ आम आदमी के आसपास के यथार्थ पर गहन दृष्टि डालती हुई कुछ नया पाने की लालसा लिए हुए है। डाॅ. सुरेन्द्र कुमार शर्मा का संस्मरण ‘हिंदी पत्रकारिता के स्तंभ रामवृक्ष बेनीपुरी’ रचनाकार के व्यक्तित्व पर समग्र रूप से प्रकाश डालता है। अन्य रचनाएं आलेख, पत्र आदि भी इस पत्रिका को उत्कृष्टता प्रदान करते हैं।

4 टिप्पणियाँ

  1. बहुत देर मैं भी इस प्त्रिका को लेती रही हूँ बहुत अच्छी पत्रिका है। धन्यवाद इस जानकारी के लिये

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  2. हमारे प्रिय मित्र, अखिलेश जी!
    आपकी कहानी पढ़ी!
    इस अंक में पृष्ठ संख्या 27 पर मेरी भी
    एक कविता : नए वर्ष प्रकाशित हुई है!
    लगता है -
    आपने पढ़ी नहीं?

    --
    कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "वसंत फिर आता है - मेरे लिए,
    नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
    --
    संपादक : सरस पायस

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  3. अखिलेश भाई!
    मेरी कविता का उल्लेख
    इस पोस्ट में शामिल करने के लिए आभार!

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  4. वास्तव में श्री सुरेश उजाला के सम्पादन में पत्रिका ने अपना नया मुकाम बनाया है। इसे राजस्थान की पत्रिका मधुमती की तरह वेबसाईट पर डालना चाहिए ताकि अधिक से अधिक पाठकों तक यह पहुँच सके।

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