पत्रिका-साहित्य परिक्रमा, अंक-अक्टूबर-दिसम्बर.09, स्वरूप-त्रैमासिक, प्रबंध संपादक-जीतसिंह जीत, संपादक-मुरारीलाल गुप्त ‘सीतेश’, पृष्ठ-64, मूल्य-15रू.(वार्षिक-100रू.दो वर्ष के लिए), सम्पर्क-राष्ट्रोत्थान भवन, ग्वालियर, म.प्र. फोनः(0751)2422942 ई मेलः shridhargovind@gmail.com
पत्रिका के इस अंक में सामाजिक चिंतन व उससे संबंधित रचनाओं को स्थान दिया गया है। विश्वमोहन तिवारी का आलेख भाषा एवं संस्कृतिः भारतीय संदर्भ हमारी संस्कृति पर गंभीर चिंतन तथा विश्लेषण प्रस्तुत करता है। हिंदुत्व की आधारशिला क्या है?(शैलेन्द्र मटियानी) आलेख इस विषय पर किसी विवाद में न पड़कर सीधे सीधे भारतीय सभ्यता से हिंदुत्व को जोड़ता दिखाई देता है। हमारे स्व की अवधारण कितनी अधिक महत्वपूर्ण है इसे डाॅ .कमलकिशोर गोयनका जी ने अपने आलेख में स्पष्ट किया है। श्रीमती संपत देवी मुरारका, राज चड्ढ़ एवं शत्रुध्न प्रसाद के आलेख पत्रिका को रोचक व ज्ञानवर्धक बनाते हैं। नंदलाल भारती व जगदीश तोमर की कहानियां आज के समाज को नजदीक से देखकर उस पर विचार व्यक्त करती प्रतीत होती है। रेखा कारड़ा की लघुकथा सहित डाॅ. मधुरेश नंदन कुलश्रेष्ठ, अखिलेश त्रिवेदी, डाॅ. ओमप्रकाश सिंह, दामोदर शर्मा, पे्रमबहादुर अजय, चिरंजीलाल भावुक तथा डाॅ. मुक्ता की कविताएं पाठक को अवश्य ही प्रभावित करंेगी। पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ, समाचार तथा पत्र आदि भी भारतीयता की भावना से ओतप्रोत हैं।

1 टिप्पणियाँ

  1. जीत सिंह जीत द्वारा सपादित इस पत्रिका की जानकारी हेतु शुक्रिया ...हालांकि पृष्ठ बहुत कम हैं फिर भी उम्मीद है की जब आपने तारीफ की है तो पत्रिका जरुर अच्छी होगी .....जीत सिंह जी को बधाई .....!!

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