पत्रिका-समावर्तन, अंक-अक्टूबर.09, स्वरूप-मासिक, प्रधान संपादक-रमेश दवे, संपादक-निरंजन श्रोत्रिय, पृष्ठ-96, मूल्य-रू.20(वार्षिक 200रू.), सम्पर्क-‘माधवी’ 129, दशहरा मैदान, उज्जैन म.प्र. (भारत), फोनः(0734)2524457, ई मेलः samavartan@yahoo.com
पत्रिका का समीक्षित अंक आंशिक रूप से ख्यात आलोचक एवं साहित्यकार श्री परमानंद श्रीवास्तव पर एकाग्र है। उनकी कविताओं एवं आलेख के साथ साथ अष्टभुजा शुक्ल का संस्मरण प्रकाशित किया गया है। दीपक प्रकाश त्यागी से बातचीत में उन्होंने उनके समय में साहित्य पर कुछ उपयोगी व पाठकों के लिए आवश्यक विचार प्रगट किए हैं। वक्रोक्ति के अंतर्गत ख्यात कवि एवं व्यंग्यकार सरोज कुमार के व्यक्तित्व व कृतित्व पर उपयोगी सामग्री पाठक का ध्यान सहज ही आकर्षित करती है। सूर्यकांत नागर से उनकी लम्बी बातचीत तथा आपातकाल पर लिखी गई कविताएं आज भी पठ्नीयता से भरपूर हैं। जवाहर चैधरी का व्यंग्य, कुंदन सिंह परिहार का आलेख एवं शांतिलाल जैन का महाकवि कालीदास पर लिखा गया स्मृति शेष एकाअनेक बार पढ़ने के योग्य है। हरिशचंद्र शुक्ल के कार्टून, आत्मकथ्य व उनसे बातचीत इस कलाकार की संघर्ष यात्रा से रूबरू कराती है। मालती जोशी की कहानी ऊसर में बीज तथा श्रीराम दवे का आलेख ‘रूक तो सही’ व निशा भोंसले, सुदेजा खान की लघुकथाएं भी उल्लेखनीय हैं। कविवर सुदीप बनर्जी पर लिखा गया आलेख ‘सुदीप बनर्जीः कैसे कहें स्वर्गीय’ उन्हें सच्ची श्रृद्धांजलि देता है। हर बार की तरह एक और अच्छे अंक के लिए बधाई।

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