पत्रिका-कथादेश, अंक-अक्टूबर.09, स्वरूप-मासिक, संपादक-हरिनारायण, पृष्ठ-98, मूल्य-रू.20(वार्षिक 200रू.), सम्पर्क-सहयात्रा प्रकाशन प्रा. लि. सी.52, जेड़.3, दिलशाद गार्डन, दिल्ली 110095(भारत) फोनः (011)22570252, ई मेलः kathadeshyatra@hotmail.com, kathadesh@gmail.com
पत्रिका के समीक्षित अंक मंे विविधतापूर्ण साहित्यिक सामग्री का समावेश किया गया है। अंक में रचनाओं की विविधता ही पत्रिका की विशेषता है। अंक अक्टूबर.09 की मुख्य कहानी राजेन्द्र श्रीवास्तव रंजन की रचना ‘जन्म दिन की पार्टी’ है। कहानी का ताना बान कुछ इस तरह से बुना गया है कि वह आज के महानगरीय संस्कारों व उसकी कुसंस्कृति पर प्रहार करता हैै। जेब में 100 रू. भी न होना व ताज जैसे फाइव स्टार होटल में दिन गुजारने की चाहत हर किसी की हो सकती है ठीक कहानी के प्रमुख पात्रों की तरह। जिसे लेखक ने बाखूबी उजागर किया है। आशुतोष भारद्वाज की कहानी ‘बेविकल्प भी एक यादगार कहानी बन सकती थी यदि इसे लेखक ने समाप्त करने की जल्दी न की होती। इसके अतिरिक्त ‘कुछ टोटल कुछ जमा’(रोमेश जोशी) व अनुदित कहानियां पात्रिका के स्तर के अनुरूप हैं। पत्रिका का प्रमुख आकर्षण ओम भारती व प्रभात की कविताएं हैं। यहां ओम भारती जी की कविता ‘घिसते हुए भी वे’ आम आदमी में जीवन संघर्ष को महसूस किया जा सकता है। नंद किशोर जी ने ‘गाॅधी जी के हे राम’ को नए संदर्भो के साथ पाठकों के समक्ष रखा है। ओमा शर्मा का रिपोतार्ज ‘जादू टोनों के देश में’ तथा मदन सोनी का कृष्ण वलदेव वैद पर लिखा गया आलेख हर पाठक, हिंदी साहित्य के मर्मज्ञ के लिए आवश्यक प्रतीत होता है। दलित प्रश्न के अंतर्गत नमिता दास के पत्र ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। भले ही इसमें साहित्यिक रस न हो पर जीवन संघर्ष की अनुगूंज अवश्य ही सुनाई देती है। देवेन्द्र रात अंकुर व ह्षीकेश सुलभ के रंगमंच को लेकर लिखे गए आलेख विविधता के साथ साथ रंगमंच के आंतरिक पक्षों को विश्लेषित करते दिखाई देते हैं। अनिल चमड़िया ने ‘मजदूरों से बात करने का साहस चाहिए’ मीडिया विमर्श में नव पत्रकारों को उनके लेखन में सार तत्व की तरफ विशेष ध्यान देने का आग्रह किया है। अविनाश का इंटरनेट का मोहल्ला व अनूप सेठी ‘साहित्य का वर्तमान’ में विशेष वस्तु ही जटिल हो गई है। जिसकी वजह से से केवल उसी पाठक को रस प्राप्त होगा जो विशुद्ध रूप से साहित्य व इंटरनेट की गहन जानकारी रखता है। इसके अतिरिक्त निरंजन श्रोत्रिय , सिद्धार्थ शंकर, रवीन्द्र त्रिपाठी, सत्यनारायण, विश्वनाथ त्रिपाठी व अर्चना शर्मा की रचनाएं भी वर्तमान सरोकारों व सामाजिक संदर्भ पर दृष्टिपात करती हैं। कथादेश के प्रत्येक अंक पठनीयता से भरपूर होते हैं। लेकिन पत्रिका के मीडिया विशेषांक के आगे लगता हैै हर अंक फीका ही होगा।

3 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने