पत्रिका-हिंदी चेतना, अंक-जुलाई-अगस्त.09, स्वरूप-त्रैमासिक, प्रमुख संपादक-श्याम त्रिपाठी, उप संपादक-डाॅ. सुधा ओम ढीगरा(अमरीका), डाॅ .निर्मला आदेश(कनाड़ा), पृष्ठ-60, संपर्क- hindi chetna, 6 Larksmere Court, Markhem, Ontario, L3R 3R1
फोनः (905)4757165, ई मेलः hindichetna@yahoo.ca For reading magazine online please visit--http://www.vibhom.com/ (On home page--Publication) or read also http://hindi-chetna.blogspot.com/
पत्रिका हिंदी चेतना का समीक्षित अंक डाॅ. कामिल बुल्के विशेषांक है। इस अंक की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। क्योंकि जो कार्य भारत से प्रकाशित हिंदी साहित्य की पत्रिकाएं नहीं कर सकीं वह इस पत्रिका ने कर दिखाया है। पत्रिका की रचनाएं किसी भी तरह से कमतर नहीं है। साथ ही पत्रिका का कलेवर तथा साज सज्जा आकर्षक व सादगीपूर्ण है। यही पत्रिका की विशेषता भी है। इस अंक में डाॅ. कामिल बुल्के पर बहुत ही उपयोगी व शोधपरक सामग्री का प्रकाशन किया गया है। हिंदी व संस्कृत के ज्ञाता व कला व संस्कृति के अद्वितीय विद्वान पर डाॅ. दिनेश्वर प्रसाद का आलेख विस्तार से प्रकाश डालता है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचिरत मानस की रचना कर भारतीय जनमानस को स्पंदित किया था। ठीक वही कार्य डाॅ. कामिल बुल्के ने रामकथा व साहित्य पर कर विदेशी जन मानस को हिंदी साहित्य से जोड़ने का सफल प्रयास किया है। डाॅ. पूर्णिमा केड़िया ने अपने आलेख में डाॅ. कामिल बुल्के की अन्य खूबियों को उद्घाटित किया है। श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी जी का आलेख ‘मानस मानस में जिनके राम’ विदेशों में रामकथा साहित्य पर किए गए कार्य पर प्रकाश डालता है। फलेमिश कवि गजे़ले की कविताओं का अनुवाद पढकर यह सहज ही समझा जा सकता है कि कामिल बुल्के क्यों साहित्य की ओर प्रवृत्त हुए होंगे। प्रो. हरिशंकर आदेश ने उन्हें ‘एक महान ंिहंदी प्रेमी’ के रूप में बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। डाॅ.कामिल बुल्के का आलेख ‘एक ईसाई की आस्था-प्रेम और तुलसी भक्ति’ हर हिंदी साहित्य प्रेमी के पढ़ कर सहेजने योग्य है। हिंदी के प्रति हिंदीभाषियों के कर्तव्य की उनकी दृष्टि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी आज से पच्चीस तीस वर्ष पूर्व थी। ‘भारतीय साहित्य और हिंदी’ आलेख उनका हिंदी के प्रति लगाव व स्नेह दर्शाता है। धर्मपाल महेन्द्र जैन का संस्मरण उनके जीवन की विशेषताओं को उजागर करने में पूर्णतः सफल रहा है। आत्माराम ने उन्हें आज के युग का तुलसीदास की संज्ञा दी है जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता। डाॅ. मृदुला प्रसाद ने फादर कामिल बुल्के के रामकथा संबंधी शोध आलेख में उनके रामकथा व साहित्य पर विचार को प्रधानता दी है। डाॅ. प्यारेलाल शुक्ल का आलेख ‘डाॅ. कामिल बुल्के-विश्व हिंदी सम्मेलन नागपुर में’ पठनीय व संग्रह योग्य है। पत्रिका की अन्य रचनाएं व समाचार तथा पत्र आकर्षक व सहेज कर रखने योग्य हैं। पत्रिका के संपादक श्री श्याम त्रिपाठी का कथन, ‘यह अंक विश्व के लिए एक अद्भुत उपहार होगा, विशेषकर उन हिंदी साहित्यकारों के लिए जो भारत से सुदूर विदेशों की धरती पर बसे हुए हैं।’ डाॅ. कामिल बुल्के के प्रति उनकी अगाध श्रृद्धा को दर्शाता है। एक अच्छे साफ सुथरे अंक के लिए हार्दिक बधाई।

4 टिप्पणियाँ

  1. हिदी पत्रिका चेतना के बारे में जानकारी देने का धन्यवाद ....डा . कामिल बुल्के के के हिंदी प्रेम और राम कथा पर जो भी कार्य किया है उसके बारे में जानकारी के लिए पत्रिका को पढना जरुरी हो जाता है ... अगर आप डा बुल्के के बारे में यहाँ भी कुछ जानकारी उपलब्ध करते तो और भी अच्छा होता ....

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  2. कामिल बुल्के जी के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता. "चेतना" ने उनपर एक विशेषांक निकला, यह जानकार प्रसन्नता हुई. आभार.

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  3. धन्यवाद इस सुंदर जानकारी के लिये

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  4. कामिल बुल्के पर समग्र रूप से सही मे अभी तक किसी पत्रिका ने प्रकाशित नहीं किया था ।

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