पत्रिका-साहित्य परिक्रमा, अंक-अप्रैल-जून.09, स्वरूप-त्रैमासिक, प्रबंध संपादक-जीत सिंह जीत, संपादक-मुरारीलाल गुप्त ‘गीतेश’, प्रकाशक-श्रीधर पराड़कर, अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास, पृष्ठ-64, मूल्य-रू.15 (वार्षिक रू.60), संपर्क-राष्ट्रोत्थान भवन, माधव महाविद्यालय के सामने, नई सड़क, ग्वालियर 474.001म.प्र.(भारत)
पत्रिका के समीक्षित अंक में डाॅ. कृष्ण चंद्र गोस्वामी ने हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि दिनकर जी के अवदान पर प्रकाश डाला है। प्रो. चमनलाल गुप्त ने कमलेश्वर के द्वारा लिखे गए ख्याति प्राप्त उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ पर एक नए दृष्टिकोण से विचार किया है। लोक चेतना के कवि भूषण की काव्य दृष्टि पर प्रो. त्रिभुवनलाल शुक्ल का विचार पत्रिका की महत्वपूर्ण प्रस्तुति है। डाॅ. कन्हैया सिंह जी के आलेख को पढ़कर लगता है कि उन्होंने ख्यात कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का संपूर्ण साहित्य पढ़े बिना ही आलेख लिख डाला है। रमेश चंद्र पंड़ित तथा सीताराम गुप्ता की कथाएं अच्छी बन पड़ी हैं। नरेन्द्र आहूजा की अपेक्षा अब्बास खान ‘संगदिल’ का व्यंग्य ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ अधिक प्रभावशाली है। पत्रिका की कविताएं, साहित्यिक समाचार तथा समीक्षाएं भी इसे अग्रिम पंक्ति में स्थान दिलाते हैं। समग्र रूप से साहित्य परिक्रमा समकालीन सारगर्भित साहित्य प्रस्तुत करती है।

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