पत्रिका-साक्षात्कार, अंक-मई.09, स्वरूप-मासिक, सलाहकार-मनोज श्रीवास्तव(सचिव संस्कृति विभाग), श्रीराम तिवारी(संचालक संस्कृति संचालनालय) प्रधान संपादक-देवेन्द्र दीपक(निदेशक साहित्य अकादेमी भोपाल), संपादक-हरि भटनागर, पृष्ठ-120, मूल्य-रू.15 (वार्षिक रू.150), संपर्क-साहित्य अकादमी, म.प्र. संस्कृति परिषद, संस्कृति भवन वाण गंगा भोपाल-03 म.प्र. (भारत)
समय से साक्षात्कार कराने वाली यह पत्रिका दिन प्रतिदिन निखरती जा रही है। हालांकि इसके आलोचक इसमें ऐसा कुछ नहीं पाते जो उल्लेखनीय हो। पर ऐसा भी नहीं है कि पत्रिका ने केवल गैर प्रगतिशील साहित्य ही प्रकाशित किया है। दरअसल प्रगतिशीलता के मायने समय के साथ बदलते जा रहे हैं। इस सदी में प्रगतिशीलता पर नए सिरे से विचार किए जाने की आवश्यकता है। अच्छा तो यह होगा कि प्रगतिशीलता को भूमंड़लीकरण से समय रहते जोड़ लिया जाए। इसी प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए पत्रिका ने सूर्यबाला, जीवन सिंह ठाकुर व इंदिरा दांगी की जीवंत तथा समय के सापेक्ष कहानी लिखी है। भालचंद्र झा, राजेन्द्र उपाध्याय, विनीता गुप्ता, उमेश नेमा तथा देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’ के गीत अच्छे बन पड़े हैं। आलेखों में विष्णु प्रभाकर तथा ओम भारती विषय की गहराई तक सुंुदर ढंग से पहंुच सके हैं। पारमिता सतपथी ओडिया कहानी का सटीक अनुवाद राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया है। श्रीराम परिहार जी का निबंध तथा अमृतलाल वेगड़ की नर्मदा यात्रा पाठक के मन में तरंगों को उत्पन्न करती हैं। पत्रिका के सभी स्थायी स्तंभ, पत्र, समीक्षाएं तथा लघुपत्रिकाओं पर लिखा गया संपादकीय प्रभावशाली है। पत्रिका में हिंदी साहित्य पर लिखे जा रहे ब्लाॅग पर भी कुछ सामग्री प्रकाशित किए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि जो काम पत्रिका की अनेक प्रतियां नहीं कर सकती वह काम ब्लाॅग का छोटा सा आलेख कर सकता ै। आशा है पत्रिका का ब्लाॅग के साहित्य जगत से अवश्य ही ‘साक्षात्कार’ होगा।

1 टिप्पणियाँ

  1. शुक्ल जी
    अभिवंदन.
    साक्षात्कार की समीक्षात्मक अभिव्यक्ति ने जानकारी भी प्रदान की है.
    आभार.
    - विजय

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