पत्रिका-अक्षरा, अंक-मार्च-अप्रैल09, स्वरूप-द्वैमासिक, प्र. संपादक-कैलाश चंद्र पंत, संपादक-डाॅ. सुनीता खत्री, सुशील कुमार केडिया, पृष्ठ-220, मूल्य-20रू.(वार्षिक120रू.), संपर्क-म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिंदी भवन, श्यामला हिल्स, भोपाल म.प्र. (भारत)
अक्षरा पत्रिका का यह सौवां अंक है। जिसमें बहुत ही उत्कृष्ट साहित्यिक सामग्री का समावेश किया गया है। सबद विचार के अतंर्गत रमेश चंद्र शाह, आलेखों में विनोद शाही, रामदरश मिश्र, ब्रज बिहारी कुमार, प्रमोद कुमार दुबे, रामेश्वर मिश्र पंकज, पुष्पपाल सिंह तथा अच्युतानंद मिश्र उल्लेखनीय हैं। उपन्यास अंश् वेणु की वापसी(सूर्यबाला), राम मेश्राम का राजेन्द्र अनुरागी जी पर संस्मरण, ललित गद्य के अंतर्गत अनुराधा शंकर की रचनाएं अच्छी तथा संग्रह योग्य हैं। योगेन्द्र अटल, सुरेन्द्र वर्मा, राममूर्ति त्रिपाठी तथा करूणाशंकर उपाध्याय के आलेखों में तत्कालीन परिस्थितियों का सुदंर विवेचन प्रस्तुत किया गया है। सूर्यकांत नागर, महीप सिंह, मृदुला सिन्हा तथा देवेन्द्र उपाध्याय का यात्रा वृतांत सौवें अंक की सार्थक ता को पूर्ण करते हैं। प्रतीक मिश्र, बटुक चतुर्वेदी, शिवकुमार अर्चन, नरेन्द्र दीपक, मयंक श्रीवास्तव तथा पुष्पारानी गर्ग के गीत गुनगुनाने योग्य हैं। रमेश चंद्र पंत, कमलेश बख्शी, मालती शर्मा की कविताएं अच्छी रचनाएं हैं। श्याम संुदर दुबे, नीरज माधव, श्रीराम परिहार व ज्ञान चतुर्वेदी का व्यंग्य अक्षरा को अन्य पत्रिकाओं से अलग करता है। अन्य स्थायी स्तंभ, रचनाएं व समीक्षा आदि भी पत्रिका की उपादेयता सिद्ध करती है। सौवें अच्छे अंक के लिए बधाई।

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