पत्रिका-मैसूर हिंदी प्रचार परिषद् पत्रिका, अंक-मार्च09, स्वरूप-मासिक, संपादक-डाॅ. वी. रामसंजीवैया, पृष्ठ-48, मूल्य-5रू.(वार्षिक50रू.), संपर्क-मैसूर हिंदी प्रचार परिषद, 58, वेस्ट आॅफ कार्ड रोड़, राजाजी नगर, बेंगलूर 560010 कर्नाटक (भारत)
पत्रिका के इस अंक में डाॅ. मित्रेश कुमार गुप्त ने राजभाषा हिंदी पर अपने आलेख में हिंदी के राजभाषा बनने से लेकर आज तक के सफर को विस्तार से प्रस्तुत किया है। डाॅ. मोहनानंद मिश्र लिखते हैं कि हिंदी तलवार की भाषा नहीं यह तो कलम की भाषा है। वे हिंदी में नवीन चिंतन को आवश्यक मानते हैं। प्रभुलाल चैधरी ने अपने आलेख ‘आज देश में हिंदी की स्थिति’ चिंता जाहिर की है। गणेश गुप्त का विचार है कि अंग्रेजी तथा अंग्रजियत ने राष्ट्रभाषा ही नहीं अपितु क्षेत्रिय भाषाओं का भी नुकसान किया है। डाॅ. जशवंत भाई पण्डया ने मनोवैज्ञानिकता, दमन का निरूपण तथा आत्म पीड़न का निरूपण के आधार पर जैनेन्द्र के उपन्यासों में नारी की स्थिति पर विचार किया है। विनोद चंद्र पाण्डेय राहुल सांकृत्यायन की यात्राओं में देश के विभिन्न भागों की तत्कालीन स्थिति से अवगत कराते हैं। प्रो. बी. ललिताम्बा ने समाज और संस्कृति के विकास में भाषा के योगदान को महत्वपूर्ण माना है। पत्रिका को संपादक ने ओम रायजादा, सविता चड्डा, मित्रेश कुमार गुप्त, रमेश तिवारी ‘विराम’ तथा देवेन्द्र कुमार मिश्रा की कविताओं से सज्जित किया है। पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ तथा आलेख भी इसे पठ्नीय तथा शोध छात्रों के लिए उपयोगी बनाते हैं।

Post a Comment

और नया पुराने