पत्रिका-आसपास, अंक-मार्च.09, स्वरूप-मासिक, संपादक-राजुरकर राज, पृष्ठ-22, मूल्य-वार्षिक 60 रू., संपर्क-एच.3 उद्धवदास मेहता परिसर, नेहरू नगर भोपाल (म.प्र.)
पत्रिका का यह अंक विविध साहित्यिक समाचारों से अवगत कराता है। सुप्रतिष्ठित गीताकार नईम को एक लाख रूपये की आर्थिक सहायता का समाचार यह संतोष प्रदान करता है कि इससे श्री नईम की बीमारी के इलाज में सहायता मिल सकेगी। उल्लेखनीय के अंतर्गत वरिष्ठ कवि साहित्यकार राजेन्द्र अनुरागी के नाम पर भोपाल की एक सड़क होगी। हिंदी के साहित्यकारों को आमजन की स्मृति में लाने का यह प्रयास प्रशंसनीय है। दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा चार वरिष्ठ साहित्यकारों रचनाकारों श्री अशोक चक्रधर, श्री इकबाल मजीद, श्री आबिद सुरती एवं डाॅ. प्रेमलता नीलम को सम्मानित करने का समाचार आसपास के पाठक को जानकारी प्रदान करता है। इस आयोजन से दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय का कद ऊंचा हुआ है तथा पुरस्कारों की गरिमा बढ़ी है। पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभों में सम्मान पुरस्कार, प्रविष्ठियां, लोकापर्ण, हालचाल आदि भी ‘शब्द शिल्पियों’ को एक दूसरे के ‘आसपास’ लाने में सफल रहे हैं।

4 टिप्पणियाँ

  1. इस पत्रिका के बारे में कुछ भी कहना - सुनना बेकार है । कुछ दिन पहले दुष्यंत कुमार के नाम पर सरकारी आवास में स्थापित संग्रहालय जाने का मौका मिला । लेकिन दुष्यंत से जुड़ा साहित्य भी तरतीब से नहीं मिला । कुछ पत्र , उनकी नाम पट्टिका , हुक्का और कुछ अन्य लोगों का सामान । उनके कृतित्व से जुड़ा कोई साहित्य संस्थान में उपलब्ध नहीं । बस दुष्यंत के नाम पर दुकान सजी है ।

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  2. सरिता जी की बात अगर सही है तो काफी गंभीर है। सरकारी बंगले में सजी दुकान में अगर वही सामान नहीं है जिसके लिये वो खोली गई है तो कुछ शक पैदा होता है। अगर दुष्यंत जी के कृतित्व से जुड़ा कोई साहित्य ही संस्थान में उपलब्ध नहीं तो फिर किस बात का संग्रहालय। ऐसी हालत में तो इस संग्रहालय को अगर कोई सरकारी मदद मिलती है तो वो बंद होनी चाहिये और अब तक मिली मदद कहां खर्च हुई इसकी भी जांच होनी चाहिये। दुष्यंत के नाम पर दुकान सजाने के लिये सरकारी बंगले का इस्तेमाल भी कहां तक उचित है, ये सवाल भी उठता है। सुना है भोपाल में साहित्य के नाम पर कई दुकानें चल रही हैं। अब समय आ गया है कि इनका खेल बंद किया जाये।

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  3. सरिता जी कभी संग्रहालय आई हैं, ऐसा न तो मुझे याद है और न ही संग्रहालय की आगंतुक पंजी में दर्ज है। यदि वे संग्रहालय आई भी हो तो उन्होंने संग्रहालय के बारे में जााने की कोशि नहीं की होगी। अन्यथा मालूम होता कि केवल दो पुस्तकों को छोड़कर दुष्यन्त कुमार का सारा साहित्य संग्रहालय में उपलब्ध है। उनकी रचनावली के चार भागों के तीन सैट उपलब्ध है, जो संग्रहालय के पुस्तकालय में पढ़ने के लिए सुलभ हैं। दुष्यन्त कुमार के पत्र और उन्हें लिखे पत्रों के साथ ही उनकी हस्तलिखित पाण्डुलिपियां, जिनमें ‘साये में धूप’ भी शामिल हैं, उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं सरिता जी जिसे दुकान मानती हैं, वह संस्थापक निदेशक के घर के एक कमरे में सात साल तक चली। उसमें अभी भी सरिता जी के साहित्यिक पूर्वजों की अमूल्य धरोहर सहेजी गई है, जिसमें हस्तलिखित पाण्डुलिपियां, सैकड़ों पत्र, हजारो छायाचित्र और साहित्यकारों की आवाजें सहेजकर रखी गई हैं। जिस पत्रिका ‘आसपास’ को लेकर सरिता जी की टिप्पणी है, उसी पत्रिका को महत्वपूर्ण मानते हुए उनके पिताश्री श्री युगेश शर्मा जी ने प्रशंसा की थी। इस पत्रिका में जिसकी रचनाएं छपने की मंशा पूरी नहीं हो पाती, उन्हें यह बकवास लगती है।
    राजुरकर राज

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