पत्रिका-हंस, अंक-मार्च.09, स्वरूप-मासिक, संपादक-श्री राजेन्द्र यादव, पृष्ठ-96, मूल्य-25रू.,(वार्षिक250रू), संपर्क-2/36, अंसारी रोड़, दरियागंज, नई दिल्ली 110.002 (भारत)
पत्रिका के मार्च-09 अंक मंे भी विविधतापूर्ण साहित्यिक सामग्री को समाविष्ट किया गया है। कथा प्रधान इस मासिक के समीक्षित अंक में सात कहानियों को स्थान दिया गया है। जिनमें, लो आ गई मैं तुम्हारे पास(स्लोवा वाॅर्नो), बंटवारा(राजन पाराशर), यमन्ना(संतोष साहनी), काली जबान(मिर्जा हामिद बेग), भगवान पायल को बचाए रखना(आर.के. पालीवाल), महामशीन(राजेश जैन) तथा सोप आॅपेरा(विपिन चैधरी) है। ख्यात कवि विचारक सुदीप बनर्जी पर महाश्वेता देवी का आलेख उनके जीवन के उतार चढ़ाव को अपनी संवेदनाएं देता है। शीबा असलम फ़हमी ने अपने आलेख ‘इस्लाम कोई मेन्स ओनली क्लब नहीं’ में मुस्लिम महिलाओं की समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक विचार किया है। दया दीक्षित ने अपेन साहित्यिक जीवन के विकास के लिए अध्ययन को सर्वोपरि माना है। नरेश कुमार टाॅक, चित्रा जैन, सुधीर सक्सेना, सुधांशु उपाध्याय, अंजना मिश्र, अशोक भाटिया तथा पंकज परिमल की कविताएं सामाजिक स्थितियों व समस्याओं पर दृष्टिपात करती है। जसवीर चावला की लघुकथा एवं डाॅ. रहमान मुसव्विर, माधव कौशिक की ग़ज़लें प्रगतिशीलता का संदेश देती है। पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ, समीक्षा तथा समकालीन सृजन संदर्भ आदि इसे पठ्नीय अंक बनाते हैं।
नोट- दूसरे भाग के लिए अगली पोस्ट का इंतजार करें।

3 टिप्पणियाँ

  1. हंस के इस अंक में स्नोवा बार्नो के बारे में जो कुछ लिखा है, उसे आपके कथाचक्र में कदाचित स्थान मिलना चाहिए ताकि पूर्ण जानकारी पाठकों को मिलेगी।

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  2. is patrika ki main bahut badi prashansak hun.....vistrit jaankari ke liye shukriyaa

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