पत्रिका-केरल हिंदी साहित्य अकादेमी शोध पत्रिका, अंक-अक्टूबर.08, स्वरूप-त्रैमासिक, संपादक-डाॅ. एन. चंद्रशेखरन नायर, पृष्ठ-20, मूल्य-20रू.,(वार्षिक80रू), संपर्क-श्रीनिकेतन, लक्ष्मी नगर, पट्टम पालस पोस्ट, तिरूवननतपुरम 695.004 केरल (भारत)
केरल से प्रकाशित समीक्षित पत्रिका की सामग्री पठ्नीय व संग्रह योग्य है। डाॅ. के. मणिकंठन नायर ने राष्ट्रीय एकता के संदर्भ में बापू और पटेल के योगदान पर विचार किया है। डाॅ. बैजनाथ प्रसाद अपने आलेख में भारत को विभिन्न भाषाओं का देश के साथ-साथ अनुकरणीय संस्कृति का प्रतीक भी मानते हैं। डाॅ. प्रभाकरण हैव्वार इल्लत ने भाषा के संबंध में लिखा है कि वह मानव के बौद्धिक मानसिक चिंतन की कुंजी भी होती है। डाॅ. एन. चंद्रशेखरन नायर का महाकाव्य ‘व्यासदेव’ एक कथा मात्र न होकर मानव के उत्थान का दर्शन है। अंक में श्रीमती उर्मि कृष्ण, अखिलेश शुक्ल, वी. गोविंद शैनाय की लघुकथाएं बाजारवाद के दौर में हमारी अस्मिता की तलाश है। श्रीमती इंदु ने जैनेन्द्र कुमार के कथा साहित्य में त्रिकोणीय प्रेम को उस समय के सामाजिक मूल्यों से जोड़कर विचार किया है। उत्कृष्ट सज्जा व कलेवर तथा शुद्ध त्रुटिविहीन मुद्रण पत्रिका की अनूठी विशेषता है। पत्रिका देखकर सहसा यह विश्वास नहीं होता कि यह केरल से प्रकाशित होती है। इस प्रयास के लिए पत्रिका के संपादक तथा उनके सहयोगी बधाई के पात्र हैं।

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