पत्रिका-कथाबिंब, अंक-अक्टूबर-दिसम्बर,स्वरूप-त्रैमासिक, प्रधान संपादक-डाॅ. माधव सक्सेना ‘अरविंद’, संपादक-मंजुश्री, पृष्ठ संख्या-56, मूल्य-15रू. वार्षिक-50रू., संपर्क-ए-10, बसेरा आॅफ दिन कारी रोड़, देवनार मुम्बई 400088 महाराष्ट्र (भारत)
website-- www.kathabimb.com , email kathabimb@yahoo.com
पत्रिका के समीक्षित अंक में चार कहानियां माई बाड़ा(सुधीर अग्निहोत्री), मृग-मरीचिका(संतोष श्रीवास्तव), कस्बे में कहर के दिन(डाॅ. विद्याभूषण) एवं बटवारा(कृष्ण कुमार) शामिल हैं। संतोष श्रीवास्तव की कहानी मृग-मरीचिका में एक सामान्य भारतीय परिवार के दर्शन होते हैं जो सुबह से लेकर शाम तक घर में खटता रहता है। कृष्ण सुकुमार की कहानी बंटवारा किसी देश के विभाजन के पश्चात की कहानी न होकर घर परिवार में भाईयों के मध्य बंटवारे के पश्चात की स्थिति को प्रगट करती है। लघुकथाओं में मतदाता(डाॅ. सुरेन्द्र गुप्त), आदमीपन 01 व 02(आलोक कुमार सातपुते) एवं बेवसी(राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी) आधुनिक समाज में आम आदमी की मनोदशा को व्यक्त करने में अच्छी तरह कामयाब हुई है। कविताओं में एक चादर मैली सी(रमेश यादव) एवं सुशांत सुप्रिय की कविताओं एक अच्छी कविता तथा लौट आऊंगा मैं के सिवाय अन्य रचनाएं प्रभावहीन हैं। अन्य स्थायी स्तंभ ‘लेटर बाक्स’, ‘सागर सीपी’, ‘पुस्तक समीक्षाएं’ पत्रिका को पूर्णता प्रदान करते हैं। साफ सुथरी साज-सज्जा वाली यह पत्रिका आकर्षित करती है।

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