पत्रिका-नवोदित स्वर, अंक-2 फरवरी.09, स्वरूप-साप्ताहिक, प्रधान संपादक-श्रीमती रश्मि आलोक, संपादक-दीप्ति द्विवेदी, मूल्य-1रू.वार्षिक-50रू. संपर्क-वासन्तम् 42, इन्दर रोड़, देहरादून उत्तरांचल (भारत)
भारत के प्रमुख शहर देहरादून से प्रकाशित होने वाला यह प्रमुख साहित्यिक समाचार पत्र है। पत्र में साहित्यिक समाचार, पुरस्कार, उपलब्धियां, सम्मान समाचार आदि प्रकाशित किए जाते हैं। पत्र में डाॅ. हरिनारायण दीक्षित (प्रोफेसर एवं अध्यक्ष संस्कृत विभाग कुमांऊ विश्वविद्यालय, नैनीताल) को उनकी कालजयी कृति ‘राधाचरितम्’ को प्राप्त हुए के.के. बिरला फाउंडेशन पुरस्कार का समाचार प्रमुखता से मुखपृष्ठ पर प्रकाशित किया गया है। दूसरे समाचार मंे ज्ञानपीठ पुरस्कार से विभूषित हिंदी कविता के शलाका पुरूष कुॅवर नारायण का समाचार है जिसकी रिपोर्टिग हरिप्रसाद दुबे न की है। अपने उद्बोधन ने उन्होंने कहा कि मैं साहित्य में पैसा कमाने के लिए नहीं आया था। कुॅवर नारायण नई कविता के प्रवर्तक कवि हैं। हिंदी कविता में उनका अवदान उच्च रहा है ऐसे कवि को यह पुरस्कार मिलना उस संस्था के लिए गौरव का विषय है जिसने यह पुरस्कार प्रदान किया है। मणिनाथ में हुए कवि सम्मेलन ‘एक शामः शहीदों के नाम’ पर विस्तृत रिपोर्ट सुभाष चन्द्र यादव ने बरेली से भेजी है। नवोदित स्वर के अनुसार यह कार्यक्रम पूरे देश में सराहा गया है। डाॅ. गिरिजा शंकर त्रिवेदी ने ‘कालिदास के प्रेम पत्र’ नाम से जो आलेख पत्रिका के लिए लिखा है वह आधुनिकता की अपने एक अलग तरह की व्याख्या है। ‘एक विचारक के बहु-वचन’ में सुरेन्द्र वर्मा ने ‘चेतना के द्वार’(कविता संग्रह, कवि रमेश कुमार त्रिपाठी) जापानी विधा हाइकू से अलग हटकर विधा द्विपदी माना है। जिसके माध्यम से कम शब्दों में बहुत कुछ कहा जा सकता है। बद्रीनारायण तिवारी ने ‘आखिर हिंदी बोलने में शर्म कैसीः मार्क टुली’ आलेख में भारत को छोड़कर हिंदी साहित्य एवं भाषा के क्षेत्र में किए जा रहे कार्य की सराहना की है। यह हमारे लिए दुर्भाग्य है कि देश की अधिकांश जनता अंग्रेजी नहीं जानती फिर भी दवाईयों के नाम, रेलवे स्टेशन, प्रमुख शासकीय विभाग हिंदी से अनावश्यक दूरी बनाए हुए है। जब बहुराष्ट्रीय कम्पनीयां ‘ठंड़ा मतलब.......’ एवं ’लाईफ झिंगालाला’ से ख्याति, धन अर्जित कर सकती है तो फिर हम क्यों उससे परहेज कर रहे हैं। यह प्रसन्नता की बात है कि यह साप्ताहिक समाचार पत्र केवल साहित्यिक समाचार ही प्रकाशित कर रहा है। रू. 50 में वर्ष भर के प्रमुख साहित्यिक समाचार प्राप्त करना बुरा तो हरगिज नहीं है।

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