पत्रिका-व्यंग्य यात्रा, अंक-जुलाई-सितम्बर08, स्वरूप-त्रैमासिक, संपादक-डाॅ. प्रेम जनमेजय, मूल्य-20रू. संपर्क-73, साक्षर अपार्टमेंट्स, ए-3, पश्चिम विहार नई दिल्ली 110063 (भारत)
हिंदी साहित्य में व्यंग्य विधा पर यह एकमात्र पत्रिका है। समीक्षित अंक में पाथेय के अंतर्गत हरिशंकर परसाई जी(ख्यात व्यंग्यकार) पर कांति कुमार जैन ने विचार किया है। दूसरा आलेख हरीश नवल का है। दोनों ही आलेखों में परसाई जी के सादगीपूर्ण जीवन तथा रहन सहन का रोचक विवरण है। त्रिकोणीय के अंतर्गत हिंदी व्यंग्य साहित्य के इतिहास तथा उसके परिवेश की पड़ताल की गई है। प्रमुखतः एक चुनौती के आमने सामने(पे्रम जनमेजय), कहानी हिंदी व्यंग्य के इतिहास की(सुभाष चन्दर), व्यंग्य के धर्म और मर्म की पड़ताल(राजेन्द्र सहगल) उल्लेखनीय रचनाएं हैं। पत्रिका में व्यंग्य विधा की सभी रचनाएं समसामयिक विद्रूपताओं पर प्रहार करती दिखाई पड़ती है। रामशरण जोशी, श्याम सुंदर घोष, कैलाश मण्डलेकर, रमेश सेनी, हरदर्शन सहगल के व्यंग्य अच्छे बन पड़े हैं। यह प्रश्न विचारणीय है कि आखिर क्योंकर संपादक ने व्यंग्य के नाम पर कुछ अनावश्यक रचनाओं को पत्रिका में स्थान दिया है। जबकि देश भर में कई अच्छे व्यंग्यकार हैं। रोमेश जोशी की रचना ‘माचिस कैसे जलाएं’, आशा रावत का व्यंग्य ‘हंसो हंसो मगर’ किसी भी दृष्टिकोण से व्यंग्य नहीं है। व्यंग्य कविता लेखन तो और भी श्रमसाध्य कार्य है। पत्रिका में राधेश्याम तिवारी, केवल गोस्वामी, ब्र्रजेश कानूनगो, आकर्षित करते हैं। शेष रचनाएं निरर्थक तथा व्यंग्य के नाम पर अनावश्यक प्रलाप प्रतीत होती है। संपादक के लिए यह उचित होगा कि रचना चयन में निष्पक्षता बरते भले ही पत्रिका मंे कुछ कम पृष्ठ हों, आकार छोटा हो, पर पत्रिका का स्वरूप काम्पेक्ट हो। हिंदी साहित्य में व्यंग्य विधा पर एकमात्र पत्रिका होने के कारण इस रचना चयन की गुणवत्ता सुधारने की आकांक्षा के साथ स्वीकार किया जा सकता है।

1 टिप्पणियाँ

  1. अखिलेश जी
    यात्रा में तो सभी आयेंगे
    कुछ भायेंगे और कुछ भागेंगे
    यात्रा जारी रहे
    शुभकामनायें मंगलकामनायें व्‍यंग्‍यकामनायें

    आप चाहे मॉडरेशन रख लें
    पर वर्ड वैरीफिकेशन हटाएं
    वरना टिप्‍पणी नहीं पा सकेंगे।

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